बाल विकास ( Child Devlopment)
बी टी सी प्रथम सेमेस्टर
शैशवास्था- शैशवावस्था बालक का निर्माण काल है। यह अवस्था जन्म से 5 या 6 बर्ष तक चलती है। इस मे इन्द्रिया काम करने लगती हैं और बालक रेंगना ,चलना,और बोलना सीखता है।
फ्रायड के अनुसार
" बालक को जो कुछ भी बनना होता है वह 4 या 5 वर्ष में बन जाता है।"
एडलर के अनुसार
" बालक के जन्म के कुछ माह बाद ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि बालक जीवन मे कोनसा स्थान ग्रहण करेगा।"
भार-
बालक का भार बालिका से अधिक होता है। पहले 6 माह में बालक का भार दो गुना ओर एक वर्ष के अंत मे तीन गुना हो जाता है।
बालक का भार बालिका से अधिक होता है। पहले 6 माह में बालक का भार दो गुना ओर एक वर्ष के अंत मे तीन गुना हो जाता है।
लंबाई-
जन्म के समय बालक की लंबाई 20.5 इंच ओर बालिकाओं की लंबाई 20.3 इंच होती है। अगले तीन या चार वर्षो में बालिकाओं की लंबाई बालको से अधिक हो जाती है। अतः चोथे व पांचवें वर्ष में लम्बाई कम बडती है।
जन्म के समय बालक की लंबाई 20.5 इंच ओर बालिकाओं की लंबाई 20.3 इंच होती है। अगले तीन या चार वर्षो में बालिकाओं की लंबाई बालको से अधिक हो जाती है। अतः चोथे व पांचवें वर्ष में लम्बाई कम बडती है।
हड्डियां -
नवजात शिशु की हड्डियां छोटी और संख्याओं में 270 होती हैं। सम्पूर्ण शैशवावस्था में ये छोटी ,कोमल , लचीली ओर भली प्रकार से जुड़ी नही होती हैं। ये कैल्शियम ,फॉस्फेट ओर अन्य खनिज पदार्थों की सहायता से दिन प्रतिदिन कड़ी होती जाती हैं। इस प्रकिया को अस्थि निर्माण कहते हैं।
नवजात शिशु की हड्डियां छोटी और संख्याओं में 270 होती हैं। सम्पूर्ण शैशवावस्था में ये छोटी ,कोमल , लचीली ओर भली प्रकार से जुड़ी नही होती हैं। ये कैल्शियम ,फॉस्फेट ओर अन्य खनिज पदार्थों की सहायता से दिन प्रतिदिन कड़ी होती जाती हैं। इस प्रकिया को अस्थि निर्माण कहते हैं।
दांत-
छटे माह में शिशु के अस्थायी या दूध के दांत निकलना आरम्भ हो जाते हैं। सबसे पहले नीचे के अगले दाँत निकलते हैं ओर एक वर्ष की आयू में उनकी संख्या 8 हो जाती है ओर लगभग 4 वर्ष की आयु तक शिशु के दूध के सारे दांत निकल आते हैं।
छटे माह में शिशु के अस्थायी या दूध के दांत निकलना आरम्भ हो जाते हैं। सबसे पहले नीचे के अगले दाँत निकलते हैं ओर एक वर्ष की आयू में उनकी संख्या 8 हो जाती है ओर लगभग 4 वर्ष की आयु तक शिशु के दूध के सारे दांत निकल आते हैं।
शैशवावस्था की विशेषता-
1- शारिरिक विकास में तीव्रता -
शैशवावस्था के प्रथम तीन वर्षों में शारिरिक विकास बहुत तेजी से होता है। भर तथा लंबाई में बृद्धि होती है। 3 वर्ष कर बाद विकास की गति धीमी पड़ जाती है।
शैशवावस्था के प्रथम तीन वर्षों में शारिरिक विकास बहुत तेजी से होता है। भर तथा लंबाई में बृद्धि होती है। 3 वर्ष कर बाद विकास की गति धीमी पड़ जाती है।
2- सीखने की प्रक्रिया में तीव्रता -
शिशु के सीखने की प्रक्रिया बहुत तेज़ होती है ओर अनेक आवश्यक बातों को सीख जाता है।
शिशु के सीखने की प्रक्रिया बहुत तेज़ होती है ओर अनेक आवश्यक बातों को सीख जाता है।
गेसिल का कथन - " बालक प्रथम 5 वर्षो में बाद के 12 वर्षों से दुगना सीख जाता है।"
3- दोहराने की तीव्र प्रव्रत्ति -
शैशवावस्था में बालक अन्य व्यक्तियों के संपर्क में आते हैं तो उसी के अनुसार क्रियाओ ओर ध्वनियों का अनुसरण ( दोहराता) करता है क्योंकि अधिकांश बालक अनुसरण द्वारा ही सीखते हैं। वह अपने माता- पिता , भाई- बहन आदि के कार्यों और व्यवहारों को दोहराता है यदि वह ऐसा नही कर पाता है तो वह रोकर या चिल्लाकर अपनी असर्मथता प्रकट करता है।
शैशवावस्था में बालक अन्य व्यक्तियों के संपर्क में आते हैं तो उसी के अनुसार क्रियाओ ओर ध्वनियों का अनुसरण ( दोहराता) करता है क्योंकि अधिकांश बालक अनुसरण द्वारा ही सीखते हैं। वह अपने माता- पिता , भाई- बहन आदि के कार्यों और व्यवहारों को दोहराता है यदि वह ऐसा नही कर पाता है तो वह रोकर या चिल्लाकर अपनी असर्मथता प्रकट करता है।
Next topic - बाल्यावस्था
Only for educational purpose.
Only for educational purpose.
कमेंट करके हमें बतायें आपको ये पोस्ट कैसी लगी।